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Geography: सौरमंडल क्या है। पिंडे कौन-कौन से हैं। Part- 1

सौरमंडल ( Solar system ) 

सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले विभिन्न ग्रहों , क्षुद्रग्रहों , धूमकेतुओं , उल्काओं तथा अन्य आकाशीय पिंडों के समूह को सौरमंडल ( Solar system ) कहते हैं । सौरमंडल में सूर्य का प्रभुत्व है , क्योंकि सौरमंडल निकाय के द्रव्य का लगभग 99.999 द्रव्य सूर्य में निहित है । सौरमंडल के समस्त ऊर्जा का स्रोत भी सूर्य ही है । 
प्लेनेमस सौरमंडल से बाहर बिल्कुल एक जैसे दिखने वाले जुड़वाँ पिंडों का एक समूह है ।
सूर्य ( Sun ) : 
  सूर्य ( Sun ) सौरमंडल का प्रधान है । यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है । 
यह दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 250 किमी/से. की गति से परिक्रमा कर रहा है । इसका परिक्रमण काल ( दुग्धमेखला के केन्द्र के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय 25 करोड़ ( 250 मिलियन ) वर्ष है , जिसे ब्रह्मांड वर्ष ( Cosmos year ) कहते हैं । सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है । इसका मध्य भाग 25 दिनों में व ध्रुवीय भाग 35 दिनों में एक घूर्णन करता है । 
सूर्य एक गैसीय गोला है , जिसमें हाइड्रोजन 71 % , हीलियम 26.5% एवं अन्य तत्व 2.5% होता है । सूर्य का केन्द्रीय भाग क्रोड ( Core ) कहलाता है , जिसका ताप `1.5\times10^7` °C होता है तथा सूर्य के बाहरी सतह का तापमान 6000°C है । 
हैंस बेथ ( Hans Bethe ) ने बताया कि `10^7`°C ताप पर सूर्य के केन्द्र पर चार हाइड्रोजन नाभिक मिलकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करता है । अर्थात् सूर्य के केन्द्र पर नाभिकीय संलयन होता है जो सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है । 
सूर्य की दीप्तिमान सतह को प्रकाशमंडल ( Photosphere ) कहते हैं । प्रकाशमंडल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते , क्योंकि सूर्य का वायुमंडल प्रकाश का अवशोषण कर लेता है । इसे वर्णमंडल ( Chromosphere ) कहते हैं । यह लाल रंग का होता है । सूर्य - ग्रहण के समय सूर्य के दिखाई देनेवाले भाग को सूर्य - किरीट ( Corona ) कहते हैं यह सूर्य का बाह्यतम परत है । सूर्य - किरीट x - ray उत्सर्जित करता है । इसे सूर्य का मुकुट कहा जाता है । पूर्ण सूर्य - ग्रहण के समय सूर्य - किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है । 
सूर्य की उम्र — 5 बिलियन वर्ष है । 
भविष्य में सूर्य द्वारा ऊर्जा देते रहने का समय  `10^{11}`  वर्ष है । का समय लगता है । 
सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है । 
सौर ज्वाला को उत्तरी ध्रुव पर औरोरा बोरियालिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा औस्ट्रेलिस कहते हैं । 
ब्रह्मांड के बारे में हमारा बदलता दृष्टिकोण 
प्रारंभ में पृथ्वी को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का केन्द्र माना जाता था जिसकी परिक्रमा सभी आकाशीय पिंड ( Celestical bodies ) विभिन्न कक्षाओं ( Orbit ) में करते थे । इसे भू - केन्द्रीय सिद्धान्त ( Geocentric Theory ) कहा गया । इसका प्रतिपादन मिस्र - यूनानी खगोलशास्त्री क्लाडियस टॉलमी ने 140 ई . में किया था । इसके बाद पोलैंड के खगोलशास्त्री निकोलस कॉपरनिकस ( 1473-1543 ई . ) ने यह दर्शाया कि सूर्य ब्रह्मांड के केन्द्र पर है तथा ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं । अतः सूर्य विश्व या ब्रह्मांड का केन्द्र बन गया । इसे सूर्यकेन्द्रीय सिद्धान्त ( Heliocentric Theory ) कहा गया । 16 वीं शताब्दी में टायकोब्रेह के सहायक जोहानेस कैप्लर ( 1571-1630 ) ने ग्रहीय कक्षाओं के नियमों की खोज की परन्तु इसमें भी सूर्य को ब्रह्मांड का केन्द्र माना गया । 20 वीं शताब्दी के आरंभ में जाकर हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला की तस्वीर स्पष्ट हुई । सूर्य को इस मंदाकिनी के एक सिरे पर अवस्थित पाया गया । इस प्रकार सूर्य को ब्रह्मांड के केन्द्र पर होने का गौरव समाप्त हो गया । 

नोट :— केप्लर ने सिद्ध किया कि सूर्य के चारों ओर प्रत्येक नक्षत्र का मार्ग दीर्घ - वृत्ताकार है । 
सूर्य के धब्बे ( चलते हुए गैसों के खोल ) का तापमान आसपास के तापमान से 1500°C कम होता है । सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है ; पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है । जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई पड़ता है , उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावात ( Magnetic Storms ) उत्पन्न होते हैं । इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती एवं रेडियो , टेलीविजन , बिजली चालित मशीन आदि में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है । 
सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हजार किमी है , जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है । 
सूर्य हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है , और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरबवां भाग मिलता है । 
नोट :— मध्यरात्रि सूर्य का अर्थ है सूर्य का ध्रुवीय वृत्त में देर तक चमकना मध्यरात्रि का सूर्य आर्कटिक क्षेत्र में दिखाई देता है ।


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